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गर्भाशय में रसौली (Uterine Fibroids): कारण, लक्षण, प्रकार और उपचार

गर्भाशय में रसौली

रसौली (Fibroids) क्या होती है? गर्भाशय में रसौली, जिसे चिकित्सकीय भाषा में यूटराइन फाइब्रॉइड्स (Uterine Fibroids) या लेयोमायोमा (Leiomyoma) कहा जाता है, गर्भाशय की मांसपेशियों और संयोजी ऊतकों से विकसित होने वाले गैर-कैंसरयुक्त (Non-cancerous) ट्यूमर होते हैं। ये सामान्यतः प्रजनन उम्र की महिलाओं में पाए जाते हैं, विशेषकर 30 से 50 वर्ष की आयु के बीच।

क्या रसौली (Uterine Fibroids) कैंसर में बदल सकती है?

रसौली लगभग 99% मामलों में सौम्य होती है और कैंसर में नहीं बदलती। हालांकि, अगर कोई महिला अनियमित रक्तस्राव, तीव्र दर्द या तेजी से बढ़ती गांठ का अनुभव करती है, तो डॉक्टर बायोप्सी या उन्नत स्कैनिंग की सलाह देते हैं ताकि सारकोमा जैसे दुर्लभ प्रकार के कैंसर की संभावना को खारिज किया जा सके।

रसौली (Uterine Fibroids) के प्रकार – यह कहाँ और कैसे बनती है?

गर्भाशय में रसौली कई अलग-अलग स्थानों पर विकसित हो सकती है, और इसके प्रकार इस बात पर निर्भर करते हैं कि वह गर्भाशय की किस परत या हिस्से में पनपी है। प्रत्येक प्रकार की रसौली के लक्षण, जटिलताएं और उपचार की विधियाँ अलग-अलग हो सकती हैं। सही पहचान और समय पर इलाज से गंभीर जटिलताओं से बचा जा सकता है।

इंट्राम्युरल फाइब्रॉइड्स (Intramural Fibroids)

इंट्राम्युरल फाइब्रॉइड्स सबसे सामान्य प्रकार की रसौलियाँ होती हैं, जो गर्भाशय की मांसपेशियों की मध्य परत में विकसित होती हैं। जब ये गांठें बढ़ती हैं, तो वे गर्भाशय के आकार को प्रभावित कर सकती हैं और इससे भारी मासिक धर्म, पेट के निचले हिस्से में भारीपन, सूजन और कभी-कभी प्रजनन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। इनका आकार अगर बड़ा हो जाए, तो यह आस-पास के अंगों पर दबाव भी डाल सकती है।

सबम्यूकोसल फाइब्रॉइड्स (Submucosal Fibroids)

सबम्यूकोसल फाइब्रॉइड्स गर्भाशय की अंदरुनी परत यानी एंडोमेट्रियम के नीचे बनती हैं। यह कम आम लेकिन सबसे अधिक जटिल फाइब्रॉइड्स में से एक होती हैं क्योंकि ये मासिक धर्म के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव, थक्के बनने और यहां तक कि बांझपन का कारण भी बन सकती हैं। ये रसौलियाँ गर्भधारण में सबसे अधिक रुकावट डालती हैं, इसलिए इनका समय पर निदान और उपचार अत्यंत आवश्यक होता है।

सबसेरोसल फाइब्रॉइड्स (Subserosal Fibroids)

सबसेरोसल फाइब्रॉइड्स गर्भाशय की बाहरी दीवार पर बनती हैं। ये आमतौर पर मासिक धर्म को प्रभावित नहीं करतीं, लेकिन जब इनका आकार बड़ा हो जाता है, तो यह मूत्राशय, मलाशय या अन्य आस-पास के अंगों पर दबाव डाल सकती हैं। इसका परिणाम पेशाब में बार-बार जाने की इच्छा, कब्ज, और पेट में असहजता के रूप में सामने आ सकता है। यदि इनका आकार अत्यधिक बड़ा हो जाए, तो शल्य चिकित्सा की आवश्यकता हो सकती है।

सर्वाइकल फाइब्रॉइड्स (Cervical Fibroids)

सर्वाइकल फाइब्रॉइड्स गर्भाशय की गर्दन यानी ग्रीवा (cervix) में उत्पन्न होती हैं। ये काफी दुर्लभ होती हैं लेकिन जब होती हैं, तो यह महिलाओं में प्रजनन संबंधी कठिनाइयाँ उत्पन्न कर सकती हैं। यह गर्भाशय के मार्ग को अवरुद्ध कर सकती हैं और गर्भाधान या प्रसव के समय जटिलता का कारण बन सकती हैं। इनके इलाज में आमतौर पर सर्जरी की आवश्यकता होती है।

पेडन्क्युलेट फाइब्रॉइड्स (Pedunculated Fibroids)

पेडन्क्युलेट फाइब्रॉइड्स एक डंठल (stalk) की सहायता से गर्भाशय की दीवार से जुड़ी होती हैं और ये या तो गर्भाशय के भीतर या बाहर लटकी होती हैं। जब ये डंठल मुरझाने या मुड़ने लगती है, तो महिला को तीव्र और असहनीय दर्द हो सकता है। इन रसौलियों का निदान अल्ट्रासाउंड या MRI से होता है और गंभीर मामलों में इन्हें शल्य चिकित्सा द्वारा हटाना आवश्यक हो सकता है।

गर्भाशय में रसौली (Uterine Fibroids) के लक्षण

फाइब्रॉइड्स के लक्षण उनकी संख्या, आकार और स्थान पर निर्भर करते हैं। लगभग 70% महिलाएं बिना किसी लक्षण के रह सकती हैं। लेकिन कुछ मामलों में ये समस्याएं उत्पन्न कर सकते हैं:

  • मासिक धर्म में अत्यधिक या लम्बे समय तक रक्तस्राव
  • पेट या श्रोणि क्षेत्र में भारीपन या दर्द
  • पेशाब बार-बार आना या अधूरा मूत्रत्याग का अहसास
  • मल त्याग में कठिनाई या कब्ज
  • पीठ या टांगों में दर्द
  • यौन संबंध के दौरान असहजता
  • बांझपन या गर्भपात की पुनरावृत्ति

रसौली (Uterine Fibroids) के प्रमुख कारण

हालांकि रसौली बनने का कोई एक निश्चित और सार्वभौमिक कारण निर्धारित नहीं किया गया है, फिर भी विभिन्न चिकित्सा शोधों और अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि कुछ जैविक, आनुवंशिक और जीवनशैली संबंधी कारक इस स्थिति के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

हार्मोनल असंतुलन

एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन, ये दो प्रमुख महिला प्रजनन हार्मोन, गर्भाशय की आंतरिक परत के विकास और रखरखाव में अहम भूमिका निभाते हैं। जब इन हार्मोनों का स्तर सामान्य से अधिक हो जाता है, तो यह गर्भाशय की मांसपेशियों में असामान्य वृद्धि को प्रोत्साहित कर सकता है, जिससे रसौली विकसित होती है। यही कारण है कि रसौलियाँ अक्सर प्रजनन आयु की महिलाओं में पाई जाती हैं, जब हार्मोनल गतिविधि चरम पर होती है।

आनुवंशिक प्रवृत्ति (Genetics)

यदि किसी महिला के परिवार में—जैसे मां, बहन या दादी को रसौली हो चुकी हो—तो उसकी अगली पीढ़ी में इस बीमारी के विकसित होने की संभावना अधिक हो जाती है। यह दर्शाता है कि फाइब्रॉइड्स के पीछे एक मजबूत जेनेटिक तत्व भी हो सकता है। वैज्ञानिकों ने कुछ विशेष जीन की पहचान की है, जो मांसपेशियों की कोशिकाओं में असामान्य वृद्धि को बढ़ावा दे सकते हैं।

मोटापा (Obesity)

मोटापे और रसौली के बीच भी एक स्पष्ट संबंध देखा गया है। अधिक वसा ऊतक, विशेष रूप से पेट और जांघों के आसपास, शरीर में एस्ट्रोजन हार्मोन का उत्पादन बढ़ा सकता है। यह अतिरिक्त एस्ट्रोजन गर्भाशय की मांसपेशियों में कोशिकाओं के असामान्य रूप से विभाजित होने का कारण बन सकता है, जिससे फाइब्रॉइड्स विकसित होते हैं। इसके अलावा, मोटापा रक्त शर्करा और इंसुलिन के स्तर को भी प्रभावित कर सकता है, जो रसौली के जोखिम को और बढ़ाता है।

गर्भावस्था

गर्भावस्था के दौरान महिला के शरीर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन का स्तर काफी बढ़ जाता है। यह हार्मोनल बदलाव गर्भाशय की मांसपेशियों और अस्तर को तेजी से विकसित करता है, जिससे पहले से मौजूद छोटी रसौलियाँ बड़ी हो सकती हैं या नई रसौलियाँ विकसित हो सकती हैं। हालांकि, कुछ मामलों में प्रसव के बाद हार्मोनल स्तर सामान्य होने पर ये रसौलियाँ सिकुड़ भी जाती हैं।

अन्य कारण

कुछ अन्य कारक भी हैं जो रसौली के विकास में सहायक हो सकते हैं। जैसे कि विटामिन D की कमी, जिससे शरीर में कोशिकाओं के सामान्य विभाजन और वृद्धि में बाधा आ सकती है। खानपान की आदतें भी इस स्थिति को प्रभावित कर सकती हैं—विशेष रूप से यदि आहार में अत्यधिक लाल मांस हो और हरी सब्जियों की मात्रा कम हो। इसके अतिरिक्त, जिन लड़कियों में बहुत कम उम्र में मासिक धर्म शुरू हो जाता है, उनमें भी फाइब्रॉइड्स विकसित होने की संभावना अधिक पाई गई है, क्योंकि उन्हें हार्मोनल गतिविधि का लंबा और अधिक समय तक असर झेलना पड़ता है।

गर्भाशय में रसौली (Uterine Fibroids) का परीक्षण और निदान

फाइब्रॉइड्स की पुष्टि के लिए डॉक्टर निम्नलिखित जांचें सुझा सकते हैं:

  • अल्ट्रासाउंड (Ultrasound): सबसे आम और प्रारंभिक जांच
  • MRI स्कैन: जटिल मामलों में रसौली के आकार और स्थान की सटीक जानकारी
  • हिस्टेरोस्कोपी: गर्भाशय के अंदर की सतह को कैमरे से देखने के लिए
  • सोनोहिस्टेरोग्राफी या HSG: गर्भाशय की गुहा का विस्तृत परीक्षण

गर्भाशय में रसौली (Uterine Fibroids) का उपचार

रसौली के उपचार का चयन उसके आकार, संख्या, स्थान, लक्षणों की तीव्रता और महिला की उम्र व भविष्य की प्रजनन योजनाओं पर निर्भर करता है। कुछ रसौलियाँ बिना किसी लक्षण के होती हैं और इलाज की आवश्यकता नहीं पड़ती, जबकि कुछ मामलों में चिकित्सकीय हस्तक्षेप अनिवार्य हो जाता है।

रसौली (Uterine Fibroids) का औषधीय इलाज (Medical Treatment)

औषधीय उपचार आमतौर पर उन महिलाओं के लिए उपयुक्त होता है जिन्हें हल्के से मध्यम लक्षण होते हैं या जो सर्जरी से बचना चाहती हैं। हार्मोनल दवाएं, जैसे कि GnRH एगोनिस्ट्स, शरीर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन के स्तर को अस्थायी रूप से कम करती हैं, जिससे फाइब्रॉइड्स का आकार घट सकता है। हालांकि यह प्रभाव अस्थायी होता है और दवा बंद करने पर फाइब्रॉइड्स फिर से बढ़ सकते हैं। इसके अतिरिक्त, दर्द और अत्यधिक रक्तस्राव को नियंत्रित करने के लिए NSAIDs (जैसे इबुप्रोफेन) और आयरन सप्लीमेंट्स का उपयोग किया जाता है, जिससे एनीमिया से भी बचा जा सकता है।

रसौली (Uterine Fibroids) का गैर-सर्जिकल इलाज

गैर-सर्जिकल विकल्प उन महिलाओं के लिए एक अच्छा समाधान हो सकते हैं जो शल्य चिकित्सा से बचना चाहती हैं या जिनकी रसौलियाँ सर्जरी के बिना भी नियंत्रित की जा सकती हैं। यूटरिन आर्टरी एम्बोलाइज़ेशन (UAE) एक आधुनिक तकनीक है जिसमें रसौली तक रक्त की आपूर्ति करने वाली धमनियों को बंद कर दिया जाता है, जिससे रसौली धीरे-धीरे सिकुड़ जाती है। यह प्रक्रिया कम इनवेसिव होती है और अस्पताल में कम समय रहना पड़ता है। एक अन्य नवीन विकल्प है MRI-गाइडेड फोकस्ड अल्ट्रासाउंड सर्जरी (FUS), जो कि एक गैर-संपर्क थर्मल तकनीक है। इसमें उच्च तीव्रता वाले अल्ट्रासाउंड तरंगों की मदद से रसौली को गर्म कर नष्ट किया जाता है, जिससे वह शरीर द्वारा स्वयं ही अवशोषित हो जाती है।

रसौली (Uterine Fibroids) का सर्जिकल उपचार

जब रसौली के कारण अत्यधिक रक्तस्राव, दर्द, या प्रजनन में बाधा उत्पन्न होती है और अन्य उपाय प्रभावी नहीं होते, तब शल्य चिकित्सा आवश्यक हो जाती है।

मायोमेक्टॉमी (Myomectomy)

यह प्रक्रिया उन महिलाओं के लिए उपयुक्त होती है जो गर्भाशय को संरक्षित रखना चाहती हैं और भविष्य में संतान की योजना रखती हैं। मायोमेक्टॉमी के दौरान केवल रसौलियों को ही हटाया जाता है, जबकि गर्भाशय को यथावत् रखा जाता है। यह प्रक्रिया ओपन सर्जरी, लैप्रोस्कोपी या हिस्टेरोस्कोपी के माध्यम से की जा सकती है, जो रसौली के स्थान और आकार पर निर्भर करता है।

हिस्टेरेक्टॉमी (Hysterectomy)

जब सभी चिकित्सकीय और सर्जिकल विकल्प निष्फल हो जाएं और महिला की संतान प्राप्ति की कोई योजना न हो, तब हिस्टेरेक्टॉमी की जाती है। यह एक स्थायी समाधान है जिसमें पूरा गर्भाशय हटा दिया जाता है, जिससे फाइब्रॉइड्स दोबारा नहीं बन सकते। यह प्रक्रिया आमतौर पर तब की जाती है जब रसौली बहुत बड़ी हो, लगातार रक्तस्राव हो या कैंसर जैसी जटिलता का संदेह हो।

लैप्रोस्कोपिक सर्जरी (Laparoscopic Surgery)

लैप्रोस्कोपिक सर्जरी आधुनिक तकनीक है जिसमें दूरबीन जैसी एक छोटी ट्यूब के माध्यम से पेट में छोटे छेद करके रसौली को हटाया जाता है। यह प्रक्रिया पारंपरिक ओपन सर्जरी की तुलना में कम दर्दनाक होती है, इसमें रक्तस्राव कम होता है, रिकवरी तेजी से होती है और शरीर पर कोई बड़ा निशान नहीं पड़ता। यह विकल्प उन महिलाओं के लिए बेहतर है जो जल्दी से सामान्य जीवन में लौटना चाहती हैं।

डॉक्टर से कब मिलें?

यदि आपको निम्नलिखित लक्षण दिखाई दें तो शीघ्र स्त्री रोग विशेषज्ञ से संपर्क करें:

  • भारी या लंबे समय तक मासिक धर्म
  • मासिक धर्म के बीच ब्लीडिंग
  • लगातार पेट या पीठ दर्द
  • गर्भधारण में कठिनाई
  • मूत्र या मल त्याग की समस्या

गर्भाशय में रसौली एक आम लेकिन प्रबंधनीय स्थिति है। सही समय पर निदान और उपचार से न केवल लक्षणों से राहत मिलती है, बल्कि महिला की प्रजनन क्षमता और जीवन की गुणवत्ता भी बनी रहती है। यदि आप या आपके किसी परिचित को इसके लक्षण महसूस हों, तो डॉक्टर से संपर्क करना बिल्कुल भी टालें नहीं।

Vardaan IVF Hospital, जालंधर और अमृतसर में सर्वश्रेष्ठ आईवीएफ सेंटर है, जहाँ अनुभवी विशेषज्ञों द्वारा अत्याधुनिक तकनीकों से सफल व विश्वसनीय बांझपन उपचार प्रदान किया जाता है। 

 

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